रोबोट
हम सिर्फ तब ही नहीं मर जाते,
जब आत्मा शरीर को छोड़ देती है,
हम तब भी मर जाते है, जब
हमारी सुक्ष्म भावनाऐं,
संवेदनाओ से रिक्त हो जाती है,
सुना है,
आत्मा इक्कीस ग्राम की होती है,
और संवेदनाऐ
शायद आत्मा सी ही भारहीन हो,
पर सहज ही ये,
अपने गुरूत्व बल से जीवन को
जीवट करती,
आत्मा के निकलते ही शरीर ज्यों
निष्प्राण हो जाता है,
संवेदनाओ की रिक्तता हमें बना देती है,
किसी वक्त के पांबद रोबोट सा,
बिना किसी हाव-भाव के,
अपनी दिनचर्या में व्यस्त,
आधुनिक मशीनरी के स्वार्थ की पराकाष्ठा सा.
© हरदीप सबरवाल